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फ्रॉक / राम करन
Kavita Kosh से
एक नही, दो चार नही रे!
इसमे इतने सारे।
दर्जी मेरी फ्रॉक बनाकर,
टाँको लाखों तारे।
बीच-बीच मे फूल बनाओ,
तितली पँख पसारे।
गीत सुनाते भौरें छापो
गा-मा-पा-धा-सा-रे।
झिलमिल-झिलमिल झालर उसमें,
सुंदर रहे किनारे।
नदिया जैसी हो बलखाती,
लहरें-लहरें मारें।
एक परी ले छड़ी हाथ में
कहती हो - तू आ रे!
चम-चम-चम-चम चमक रहे हों,
जुगनू ढेरों सारे।