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बँटवारा / अरुण चन्द्र रॉय

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चलो भाई
बड़े हो गए हैं
हम
अब कर लेते हैं
बँटवारा

माँ के दूध का
हिसाब लगा लेते हैं
बड़े ने कितना पिया
मँझले ने कितना पिया
और छुटकी को
कितना पिलाया माँ ने दूध
ज़रूरी है इसका हिसाब
अगर कोई
कमी-बेसी हो तो कह लेना
लगा लेना कीमत

पिता के
खेत-खलिहान तो हैं नहीं
सो बाँटने के लिए बस है
उनका प्यार
परवरिश
दिए हुए संस्कार
साथ ही परवरिश में किया गया फ़र्क
ठीक से हिसाब लगा लेना
कुछ छूट ना जाए
रात-रात जो जाग कर
अपने कंधे पर झुला कर जो रखा था
उसकी कीमत लगा लेना
उन्हें भी बाँट लेंगे

याद है तुम्हे
ये दालान
जिस पर चौकड़ी जमा
हम सब सूना करते थे
क्रिकेट का आँखों देखा हाल
बी0 बी0 सी0 के समाचार
बतकही और
बहसबाजी
बाँट लो उन पलों को
हँसी के ठहाकों को
उनसे उपजी ख़ुशी को

ये दो कमरे हैं
किसने कितना पसीना बहाया
किसने कितनी ईटें ढोई
लगा लो इसका भी हिसाब
बहुत आसान हो जाएगी
ज़िंदगी

अंतिम क्षणों में
बहुत रोए थे पिताजी
सब बेटो और बहुओं के लिए
कुछ आँसुओं के बूँदें
मोती बन गिरी थीं
मेरे गमछे में
बस, मैं नहीं बाँट सकता हूँ इन्हें