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बँटवारा / पल्लवी मिश्रा
Kavita Kosh से
जब धरती बँटी,
तो देश हुए-
जहाँ अलग-थलग
परिवेश हुए-
देश बँटा तो राज्य हुए-
सभी लोक-रीति विभाज्य हुए-
राज्य में शहर
और शहर में गली-मुहल्ला-
इतना ही नहीं
हमने तो
बाँटा-ईश्वर-अल्ला-
हिन्दू हुए,
मुसलमाँ हुए,
हुए सिख-ईसाई-
जान के दुश्मन बन गए देखो
जो थे भाई-भाई-
मजहब बाँट कर भी हमें
सन्तोष कहाँ हुआ-
इक-दूजे के विनाश के लिए
अपने-अपने ईश्वर, खुदा और गुरु से
हम माँगने लगे दुआ-
कभी मस्जिद टूटा,
कभी मन्दिर ढहा-
कभी गुरुद्वारे में
दरिया-ए-खून बहा-
बाँटते-बाँटते
हमने दिल को भी बाँट लिया है-
मुहब्बत की जमीं को
नफरत से पाट दिया है-
जाने यह पागलपन हमें
कहाँ ले जाएगा-
विनाश की पगडण्डियों पर चलकर
आखिर
किस मुकाम ठहराएगा?