भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बँधा होता भी / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
बँधा होता भी
मौन यदि
उस व्यथा के रूप से कोमल
जो कि तुम हो
समय पा लेता
उसे तब भी।
(1941)