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बंगाल आर्मी फौज के सिपाही / रणवीर सिंह दहिया

इस प्रकार इस विद्रोह के ज्यादा व्यापकता वाले कारण थे। देश प्रेम की भावना और अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ गुस्सा था। अंग्रेजों के प्रति सहानुभूति खत्म होती जा रही थी। ऐसी राष्ट्रीय भावना गौ और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों के इस्तेमाल से पैदा नहीं की जा सकती थी। ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि अंग्रेजों के विरूद्ध जंग में हमारे फौजियों ने इन्ही कारतूसों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया था। मेरठ से देसी फौज दिल्ली के लिए चल पड़ी। क्या बताया भलाः

बंगाल आर्मी फौज के सिपाही डटगे रणभूमि मैं आकै॥
हिंदु मुस्लिम साथ लडंे फिरंगी पड़या तिवाला खाकै॥
हर जवान फौजी के दिल मंे उमंग भरी घणी भारी रै
सारै फौजी पाछै-पाछै चाले आगै पांडे क्रान्तिकारी रै
न्यों सोचैं थे फौजी तिरंगा लहरा दयां दिल्ली जाकै॥
तिल-तिल करकै आगे बढ़ते देश आजाद कराया चाहवैं
धर कांधे बन्दूक फौजी सभी कदम तै कदम मिलावैं
थी नई-नई तकरीब भिड़ाई सारै भाज्या फिरंगी घबराकै॥
महिला कति पाछै रही कोन्या हर जगां वो साथ लड़ी
अंग्रेजां नै होई धरती भीड़ी ये देखी औरत साथ खड़ी
पहली आजादी की जंग फिंरगी छोड़या कति रंभा कै॥,
बंगाल आर्मी फोजी सेना नया इतिहास रचाया था
तन-मन-धन सब लाकै देश आजाद कराना चाहया था
रणबीर सिंह करै कविताई रै कलम अपनी या ठाकै॥