बंजारेपन का मारा प्रेम / रंजना मिश्र
तरह तरह के फूल पत्तों पेड़ गाछ चिरई चुनमुन ताप पाला बारिश
और लोगों से भरी इस दुनिया में
कौन कब कहाँ टकरा जाए
कहाँ एक क्षण को हम ठहर जाएं
दुलार दें किसी को मन ही मन
ध्वस्त हो जाएं दीवारें
सबसे कोमल क्षणों में
प्रेम कब हमें निहत्था निःशंक ढूंढ निकाले
और हमारी मिटटी नम कर दे
खुद को थोड़ा सा छोड़ जाए हमारे भीतर
सींच जाए हमें
कब हम अनजाने ही हो जाएँ तैयार
उन उबड़ खाबड़ रास्तों पर चल निकलने को
अदृश्य ठंडी आग में जलने को
उस मीठी उदासी के लिए
जो इसका हासिल है
किसे मालूम
और किसी एक दिन हमें चमत्कृत कर
अपने ही बंजारेपन का मारा प्रेम
हमें स्तब्ध अकेला और उदास छोड़
गुम हो जाए
ताकि हम सुनते रहें उसकी प्रतिध्वनियां
और करते रहें इंतज़ार
किसी और समय
और कारणों से
और तरीके से
उसके लौट आने का
और इस इंतज़ार में करें प्यार
तरह तरह के फूल पत्तों पेड़ गाछ चिरई चुनमुन ताप पाला बारिश
और लोगों से भरी इस दुनिया को