भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बंटी की पेंसिल / पूनम सूद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुना था
मिलती है सज़ा
अपने पाप की

बालमन ने मेरे
छोटे-छोटे ही तो
किये थे पाप;
बोला था झूठ,
लगायी थी चुगली,
की थी मनमानी;

बस, एक बार
चुराई थी बंटी की पेंसिल,
लौटा भी दी थी
दूसरे दिन 'सॉरी' कह कर

फिर, क्यों दी
भगवान ने मुझे
इतनी सख़्त सज़ा?
बाँध दिया,
हमेशा के लिए
पहिये वाली कुर्सी से मुझे

सज़ा के तौर पर,
अगर लिये थे पैर मेरे भगवान ने,
लौटा तो देता
बंटी के पेंसिल की तरह