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बंदरगाह / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सात समुंदर पारकर मैं पहुंचता हूं तुम्हारे पास
तुम मेरे लिए बंदरगाह की तरह हो
जहां मेरे मन को मिलता है विश्राम
तुम्हारे पनाहगाह में ठहरकर
मैं आगामी यात्रा के लिए रवाना होता हूं
मैं अपनी दुनिया का कोलम्बस हूं
भटकता रहता हूं समंदर दर समंदर
खेलता रहता हूं तूफानों से
सारी जहाजें डूब जाने के बाद
मुझे उम्मीद है कि मुझे
तुम्हारे बंदरगाह में मिलेगी शरण