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बंदर खेतों को बंजर कर जाते हैं / राकेश जोशी
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बंदर खेतों को बंजर कर जाते हैं
लेकिन चिड़ियों के कतरे पर जाते हैं
जिन लोगों का सूरज धुँधला होता है
उन लोगों के सपने भी मर जाते हैं
उनका ही किरदार उन्हें तुम समझाओ
अपना क्या है, डरना है, डर जाते हैं
तुम बस अपना नाम डुबाकर मत जाना
पैसे तो सब लोग कमाकर जाते हैं
उन पौधों को अब भी पानी देता हूँ
जिनके पत्ते सावन में झर जाते हैं
ख़ूब उजाला करते हैं वो दुनिया में
ख़ूब अँधेरों से लेकिन भर जाते हैं
पिछली पीढ़ी वाले अगली पीढ़ी के
काँधे पर सारा बोझा धर जाते हैं
चूल्हा-चौका, खा़ली बर्तन, अंगारे
मिलते हैं जब शाम को वो घर जाते हैं