भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंदे जानि साहिब गनीं / रैदास
Kavita Kosh से
।। राग आसा।।
बंदे जानि साहिब गनीं।
संमझि बेद कतेब बोलै, ख्वाब मैं क्या मनीं।। टेक।।
ज्वांनीं दुनी जमाल सूरति, देखिये थिर नांहि बे।
दम छसै सहंस्र इकवीस हरि दिन, खजांनें थैं जांहि बे।।१।।
मतीं मारे ग्रब गाफिल, बेमिहर बेपीर बे।
दरी खानैं पड़ै चोभा, होत नहीं तकसीर बे।।२।।
कुछ गाँठि खरची मिहर तोसा, खैर खूबी हाथि बे।
धणीं का फुरमांन आया, तब कीया चालै साथ बे।।३।।
तजि बद जबां बेनजरि कम दिल, करि खसकी कांणि बे।
रैदास की अरदास सुणि, कछू हक हलाल पिछांणि बे।।४।।