बंदौं हरि-पद-पंकज पावन।
विधि-हर-सुर-रिषि-मुनिजन-बंदित, सुमिरत सब अघ-ओघ-नसावन॥
जे पद-पद्म-पराग परसि पुनि गोतम-तिय भइ भावनि भामिनि।
जे पद-पद्म-पराग परसि सुरसरि-जल अघ धोवत दिन-जामिनि॥
जे पद-पद्म भूमि-लक्ष्मी-उर-मंदिर सुचि नित रहत बिराजित।
जे पद-पद्म प्रेम-रस-पूरित ब्रज-जुवतिन-उरोज रह तजित॥
जे पद-पद्म भक्त-संतनि के हियँ अति सुख सौं बसत निरंतर।
ते पद-पद्म बसहु लोलुप के धन-जिमि नित मेरे उर-अंतर॥