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बंद मुट्ठी में / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
छूट गया पीछे जो
उसमें क्या अपना था
बस
खोती रही खुद को
बहुत सोचती
डरी, सहमी
खोलती
बंद मुट्ठी अपनी
देखने बची थाती
शून्य है वहां भी
कहां कुछ बचा