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बंद मुठ्ठी में छुपा है राज़ दिलबर देखना / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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बंद मुठ्ठी में छुपा है राज़ दिलबर देखना
क्या लकीरों में लिखा है पढ़ के उन पर देखना

डूब कर उभरेगा सूरज फिर वहीँ वो शान से
तुम नज़ारा सुबह का नज़रें उठा कर देखना
                                                                                                    
अक्स मेरा ही दिखेगा चाँदनी-सी रात में
तू किनारे बैठ कर गहरा समंदर देखना

मैं धरा से गुम हुआ गर छोड़ जाऊंगा निशाँ
पावं रक्खूंगा जहां मैं तू बराबर देखना
 
देख"आज़र"देख सीना मेरा सारा जल गया
तू सुलगती आँच से खुद को बचा कर देखना