भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बंद हुयां पछै / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बराबर आळै घर में
कुण चालतो रह्यो ?
     -म्हांनै कांई ठाह !

सामलै घर में
थाळी कियां बाजी ?
      -म्हांनै कांई ठाह !

होळी-दियाळी
रामां-सामां करो ?
     -म्हारै कांई अड़ी है !

चढ़ती-उतरती में
सुख-दुख री पूछो ?
     -म्हांनै कांई पड़ी है !

म्हैं बक्सै रा बावळा
बक्सै री दुनिया में बंद हुयां पछै
बारली दुनिया में कांई पड़ियो है !