भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंद हुयां पछै / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बराबर आळै घर में
कुण चालतो रह्यो ?
-म्हांनै कांई ठाह !
सामलै घर में
थाळी कियां बाजी ?
-म्हांनै कांई ठाह !
होळी-दियाळी
रामां-सामां करो ?
-म्हारै कांई अड़ी है !
चढ़ती-उतरती में
सुख-दुख री पूछो ?
-म्हांनै कांई पड़ी है !
म्हैं बक्सै रा बावळा
बक्सै री दुनिया में बंद हुयां पछै
बारली दुनिया में कांई पड़ियो है !