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बंद / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
बंद अब होने को है दिल का दरीचा
बस अभी
इक सायं सायं
शहर में
करने लगेगी गर्दिशें
धीरे धीरे
शहर सारा
रक़्सगह बन जाएगा
दूर से
कुत्तों की आवाज़ों के सम पर
घुप्प अँधेरा
ज़ीना ज़ीना
हाथ फैलाए हुए
रक़्सगह के सहन में दर आएगा
तालियाँ पीटेंगे पत्ते
बिल्लियाँ पंजों को पोछेंगीं जुबाँ से
नालियों की धमनियों में
कुलबुलाता
शहर का आबे रवाँ
रुकने लगेगा