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बंधु, लिखा जो / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
बंधु, लिखा जो
खत में हमने
उसे प्यार से पूरा पढ़ना
पहले पन्ने पर लिक्खा है
हालचाल हमने इस घर का
अगले पन्ने पर थोड़ा-सा
ज़िक्र किया है इधर-उधर का
उन खबरों का
मर्म बाँचना
तभी, बंधु, तुम आगे बढ़ना
आगे हैं कुछ कविताएँ
जिनमें हम सपनों से बतियाये
वहीँ हाल उन चेहरों का भी
जिन पर हैं पतझर के साये
सूरज के
अंधे होने का
दोष न उनके माथे मढ़ना
खत के अंतिम हिस्से में हैं
हमने जो आशीष उचारे
मिले हमें वे हैं पुरखों से
तीन लोक से वे हैं न्यारे
मसलन यह ही -
नेह-बसी
माटी से ही देवा को गढ़ना