बइठल-बइठल सोचइत हती।
बात उखार के रोपइत हती॥
खएले रही कए जनम के करजा।
ओकरे आई तक ढ़ोइत हती॥
कहिया-कहिया के खिस-पित ले क।
अप्पन केश हम नोचइत हती॥
बनिहारी हए बनिहार के मथ्थे।
हम कटनी खेत के करइत हती॥
सुख-दुख त हए ई जिनगी में लागल।
करनी हम अप्पन भोगइत हती॥