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बगत री नदी / इरशाद अज़ीज़

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म्हैं अर थूं
बगत री नदी मांय
गोवता खावता-खावता
कठै आय पूग्या हां
आम्हीं-साम्हीं हां, पण
ना बात-बंतळ
आपां दोयां रै बिचाळै
जे कीं है
तो फगत
दोयां री आंख्यां सूं
बैंवती गंगा-जमुना।