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बगत : तीन / ओम पुरोहित ‘कागद’

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बगत माथै बाया
मोती नीपजै
कथ तो दियो
पण
नीपजता नीं देख्या।

बाया दाणां
बगत आयां
नीपज्या पण कांकरा
छेकड़
ओळाव ढूंढ्यो
बगतसर नीं होई
असाढ में बिरखा।

सांच लाध्यो
बगतसर बायां नीं
बगतसर होयां
नीपजै मोती!