बगावत की कोई उम्र नहीं होती मेरी जान... / लोकमित्र गौतम
जब डूबते सूरज को मैंने 
पर्वत चोटियों को चूमते देखा 
जब बाग़ के सबसे पुराने दरख्त को मैंने 
नई कोंपलों से लदे देखा 
तो समझ गया 
फूल की तरह खिल जाने 
खुशबू की तरह बिखर जाने 
...और गले से लगकर मोम की तरह पिघल जाने की 
कोई उम्र नहीं होती 
कोई उम्र नहीं....
तुम्हें ताउम्र मुझसे शिकायत रही न कि मुझमें धैर्य क्यों नहीं है?
मैं हर मौसम में क्यों बेचैन रहता हूँ? 
सुनो, मैं आज बताता हूँ 
 मैं तिनके तिनके जोड़ जोड़कर बना हूँ 
मुझमें इस धरती का सब कुछ थोडा थोडा है 
मुझमें इस नशीली धूप का 
इस सुलगती बारिश का 
इस हाडकंपाती ठंड का 
सबका कुछ न कुछ हिस्सा है मुझमें 
फिर भला बदलते मौसमों में मैं अपने बेचैन बदलावों को कैसे छिपा पाऊंगा...? 
मैं कोई सॉफ्टवेयर नहीं हूँ कि एक बार में ही प्रोग्राम कर दिया जाऊं 
उम्रभर के लिए..
..और मेरी हरकतें हमेशा हमेशा के लिए 
किसी माउस के इशारे की गुलाम हो जाएँ? 
नहीं मेरी जान ..
मैं तो हर मौसम के लिए बेकरार पंछी हूँ 
तुम मुझे मोतिया चुगाओ या रामनामी पढाओ 
जिस दिन धोखे से भी पिंजरा खुला मिला 
उड़ जाऊँगा..
कतई वफादारी नहीं दिखाऊंगा 
फुर्र से उड़कर किसी डाल में बैठूँगा 
और आजादी से पंख फड़फड़ाऊँगा 
क्योंकि मुझे पता है 
चाहत का कोई पैमाना नहीं होता 
और बगावत की कोई उम्र नहीं होती 
कोई उम्र नहीं मेरी जान ...कोई उम्र नहीं ..
जिनके पास इतिहास की हदें न हों 
वो बेशर्मी की सारी हदें तोड़ सकते हैं 
जिनके पास अतीत की लगामें न हों 
वो बड़े शौक से बेलगाम हो सकते हैं 
लेकिन मुझे ये छूट नहीं है 
क्योकि मैं एक ऐसे इतिहास की निरंतरता हूँ 
जहां कदम कदम पर दर्ज है 
कि गर्व में तन जाने 
जिद में अड़ जाने 
और बारूद की तरह फट जाने की कोई उम्र नहीं होती 
कोई उम्र नहीं मेरी जान...कोई उम्र नहीं  
तुमने गलत सुना है कि अनुभवी को गुस्सा नहीं आता 
अनुभव कोई सेनेटरी पैड नहीं है 
कि सोख ले हर तरह की ज्यादती का स्राव? 
अनुभवी होना ,कुदरतन कुचालक हो जाना नहीं होता 
कि जिंदा शरीर में अपमान की विद्युतधारा कभी बहे ही न 
न...न..जब तिलमिलाता है अनुभव 
तो उसके भी हलक से निकल जाता है बेसाख्ता 
समझदारी गई तेल लेने 
लाओ मेरा खंज़र 
लो संभालो मेरा अक्लनामा
क्योंकि नफरत की कोई इन्तहां नहीं होती 
और अक्लमंदी की कोई मुक़र्रर उम्र नहीं होती 
कोई उम्र नहीं होती मेरी जान ... कोई उम्र नहीं 
अगर तुम्हे याद नहीं तो मैं क्यों याद दिलाऊं कि जब हम पहली बार मिले थे 
उस दिन अचानक बहुत तेज बारिश होने लगी थी 
..और हम दोनों साथ साथ चलते हुए काफी ज्यादा भीग गए थे 
तुम्हें कुछ नहीं याद तो मैं कुछ याद नहीं दिलाऊँगा  
क्योंकि ये तुमभी जानती हो और मैं भी 
कि याद्दाश्त का रिश्ता याद करने की चाहत से है 
याद करने की क्षमता से नहीं 
फिर तुम क्यों चाहती हो कि मैं भूल जाऊं 
कि भूल जाने की कोई उम्र नहीं होती 
कोई उम्र नहीं मेरी जान ..कोई उम्र नहीं 
मुझे सफाई न दो,मुझे सबूत नहीं चाहिए 
कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं 
मोहब्बत कभी सात पर्दों में छिपकर नहीं बैठती 
मोहब्बत बहुत बेपर्दा होती है 
उसकी बेपर्दगी की कोई सरहद नहीं होती 
कोई सरहद नहीं मेरी जान... कोई सरहद नहीं
	
	