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बगुला जी / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
बग-बग उजरोॅ बगुला जी
मछली मारोॅ, बगुला जी ।
खालिये मछली पेट मेॅ देभौ
पानियो ढारोॅ, बगुला जी ।
एक खदा मेॅ मछली छोॅ
बैठलोॅ बारोॅ बगुला जी ।
एक टांग पर खाड़ोॅ सब्भे
देह संभारोॅ, बगुला जी ।
गिरला अगर खदैया में जों
होवा कारोॅ, बगुला जी ।
खैला-पीला खूब मोटैला
टांग पसारोॅ, बगुला जी ।