भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बगुला भक्तन सों डरिये री / जुगलप्रिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बगुला भक्तन सों डरिये री।
इक पग ठाढ़े ध्यान धरत है दीन मीन लौं किमि बचिए री।
ऊपरते उज्जल रंग दीखत हिये कपट हिंसक लखिये री॥
इतने दूर ही रहे भलाई निकट गये फंदनि फँसिये री।
जुगल प्रिया मायावी पूरे भूलि न इन संग पल बसिए री॥