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बचपन की चाहत / पवन चौहान
Kavita Kosh से
मैं अब जान चुका हूँ अंतर
ऊँचाई और गहराई में
झूठ और सच्चाई में
अपने और पराए में
आजादी और गुलामी में
पाप पुण्य में
जात पात में
काले गोरे में
बसंत और पतझड़ में
फूल और कांटे में भी
आज जान गया हूँ मैं
बहुत कुछ
अनुभव की भट्ठी की तपन का
मुझे एहसास है
आ गया है मुझे
टेढ़े-मेढे रास्तों पर सीधे चलना
पर फिर भी न जाने क्यों
लौट जाना चाहता हूँ मैं
उसी भूलभूलैया
उन्ही टेढे-मेढे रास्तों पर
अपनी खोयी मस्ती में
उसी तोतली बोली के
गुदगुदाते शब्दों में।