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बचपन की तस्वीर दिखाने आया हूँ / सूरज राय 'सूरज'
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बचपन की तस्वीर दिखाने आया हूँ।
बागों से अमरूद चुराने आया हूँ॥
एक शाह को अपने साथ ले मरघट में
मिट्टी की औक़ात बताने आया हूँ॥
मन्दिर-मस्ज़िद में जो पत्थर पुजते हैं
आईना उनको दिखलाने आया हूँ॥
होठों से लिक्खी थी तेरी हथेली पे
वो सारी तहरीर मिटाने आया हूँ॥
पैदल ही घर पहुंचा सांसे थीं जब तक
क़ब्र तलक पर शाने-शाने आया हूँ॥
ऐ शमशां इक छोटा-सा कमरा दे दे
अपनी सारी उम्र बिताने आया हूँ॥
एक सरफिरा जुगनू बोला "सूरज" से
एक फूंक से तुझे बुझाने आया हूँ॥