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बचपन की नदी / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना

हममें हरेक के पास थी एक नदी बचपन में
जहाँ से शुरू की हमने अपनी यात्रा
जिसके जल में हम नन्हें-मुन्नों ने
सीखा तैरना और सीखा डुबकियाँ लगाना

भले ही छोटी या उथली थी यह नदी
पर यही थी शुरुआत — यही उद्‍गम

पल को आँखें मून्दो तो तत्क्षण
तुम देखोगे नदी — नदी अपने बचपन की
निस्तब्ध रात्रि में तुम सुनोगे उसकी छपाक्‍-छपाक्‍
जब नीन्द में गाफ़िल होगी सारी दुनिया

नदी बहती रहेगी अविरल औ’ बेख़बर
कि वही थी शुरुआत — वही उद्‍गम

युद्ध के पूर्व तुम सुनोगे और
सुनोगे तुम बियाबाँ में, सुनोगे किसी पराए ठौर
नींद में डूब जाओगे और डूबते ही देखोगे नदी
और इसी नदी में धोओगे तुम अपना चेहरा

एकाकी नहीं महसूस करोगे तुम तत्क्षण
छूते ही शुरुआत — छूते ही उद्‍गम

बच्चे हो जाओगे तुम घर में फिर से बरसों बाद
और सुनोगे उसमें ममतालु माँ की आवाज़
जितने ज़्यादा गहरे उतरोगे तुम धारा में
उतना ही ज़्यादा जियोगे जीवन

उमड़ने दो उसे दूर, दूर, दूर तलक
बहने दो उसे — अविराम
वह जो तुम्हारा प्रारम्भ है, तुम्हारी उद्‍गम ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना