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बचपन के अर्थ बोध / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
Kavita Kosh से
भरा पुरा मैं
जैसे
चित्र सजी दालानें।
बचपन के
सँगी साथी अर्थ-बोध
रह रह कर मुझे टेरते,
नदी किनारे
वन-वृक्षों के तले
खेल के लिए घेरते;
संत्रासों की कथा सुनें
या इनका कहना मानें।