Last modified on 14 सितम्बर 2015, at 15:18

बचपन के एक दोस्त के लिए-2 / राजा खुगशाल

बचपन में
पढ़ने-लिखने के लिए
वह शहर चला गया था
तब से वे देवदारु नहीं महके
मेरी कविताओं में
जिनकी छाया में हम
खेला करते थे
जंगल के वे फूल भी नहीं खिले
जिनके आस-पास हम
तितलियाँ छेड़ते थे

जाड़े के वे दिन भी नहीं लौटे
जिनकी गुनगुनी धूप में सरसों खिलती थी
सन्तरे पकते थे ।