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बचपन के किस्से सुनो जी बड़ों के / रमेश तैलंग
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दादाजी ने सौ पतंगे लूटीं
टाँके लगे, हड्डियाँ उनकी टूटी,
छत से गिरे, न बताया किसी को,
शैतानी करके सताया सभी को,
बचपन के किस्से सुनो जी बड़ों के।
मम्मी ने स्कूल में मार खाई,
मैडम की अपनी हँसी थी उड़ाई,
कापी मंे नंबर भी खुद ही बढ़ाए,
पर किसमें हिम्मत थी, घर में बताए?
बचपन के किस्से सुनो जी बड़ों के।
पापा थे कंचों के शौकीन ऐसे,
छुप-छुप चुराते थे दादा के पैसे,
गर्मी का मौसम हो या तेज सर्दी,
जमकर उन्होंने की अवारागर्दी,
बचपन के किस्से सुनो जी बड़ों के।
अब याद करते तो भरते ठहाके,
लेते हैं पूरे मजे फिर सुना के।
बचपन के किस्से सुनो जी बड़ों के।