भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बचपन के हमरा याद के दरपन कहाँ गइल / मनोज भावुक
Kavita Kosh से
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
बचपन के हमरा याद के दरपन कहाँ गइल
माई रे, अपना घर के ऊ आँगन कहाँ गइल
खुशबू भरल सनेह के उपवन कहाँ गइल
भउजी हो, तहरा गाँव के मधुवन कहाँ गइल
खुलके मिले-जुले के लकम अब त ना रहल
विश्वास, नेह, प्रेम-भरल मन कहाँ गइल
हर बात पर जे रोज कहे दोस्त हम हईं
हमके डुबाके आज ऊ आपन कहाँ गइल
बरिसत रहे जे आँख से हमरा बदे कबो
आखिर ऊ इन्तजार के सावन कहाँ गइल