बचपन छै नीलाम / शिवनारायण / अमरेन्द्र
डुबता केॅ ऊपर करौं, यैमें गेलै ऊ व्यक्ति
मददोॅ लेॅ चिखलै बहुत, ऐलै नै कोय शक्ति।
पानिये-पानी टाल छै, मेघे टा आकाश
सब टा जन भयभीत छै, चलतेॅ फिरतेॅ लाश।
छितरैलोॅ छै लोग सब, आर सुलगलोॅ आँख
कड़कड़िया छै धूप ठो, क्षत-विक्षत छै पाँख।
बापू मजूरी में गेलै घोॅर मांय सुलगाय
जौ-गेहूँ के खेत में, बचपन-बाल विकाय।
भोर भिहानै गाँव में, निकलै लोग कुठाम
मिरचाई के खेत में, बचपन छै नीलाम।
बँसबिट्टी-मंदिर ठियां, सुगना बैठी रोय
आग उठै खलिहान में सबटा स्वाहा होय।
जिनगी जे बोझोॅ किसिम, कर्जा डुबलोॅ पाँव
बिटिया लेली फेरूं सें, वही द्वार, घर-गाँव।
टोला-टोला कर्ज में, रोजी गेलै विलाय
द्वारे पर साहू ठड़ा, कना मुक्ति केॅ पाय।
गाँव-गाँव बूढ़ा दिखै, युवक गेलै परदेश
घरवाली जारन खोजै, बच्चा माथें ठेंस।