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बचपन - 15 / हरबिन्दर सिंह गिल

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तरंगों और उमंगों की लहरों पर
उमड़ता यह बचपन
जो एक माँ की गोदी से शुरू होकर
घर के आंगन
फिर स्कूल के प्रांगण
और मोहल्ले के गली-कूचों में होता हुआ
जब जिंदगी के चौराहे पर पहुँचता है
भावी भविष्य का
एक सूत्र सा बंध चुका होता है।

चौराहे पर पहुँचकर वह जिंदगी के
किस रास्ते पर चलना चाहता है
मन, मस्तिष्क और आत्मा
से बंधा यह सूत्र ही
उसके जीवन का मार्ग दर्शन करता है।

मंजिल से पहले
जगह-जगह चौराहे आते हैं
राह से कहीं भटक न जाए जिंदगी
बहुत संभाल के रखने की
जरूरत है बचपन को।