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बचपन - 17 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
सोच और बचपन का
एक बहुत दूरगामी रिश्ता है।
इन दो मोतियों से ही तो
मानवता का रूप निखरता है।
सोच में हमेशा निखार रहे
बचपन को चाहिये
वह आने वाले हर विचार को
तर्क के द्वार से गुजरने दे।
देखोगे जिंदगी अपना अर्थ
स्वयं ही ढूंढने लगेगी।
ऐसा बचपन
जब कल मानव बनेगा
वह समाज के गले का
हार बन जाएगा।
यह हार कितना कीमती होगा
उसकी तर्क संगत
जिंदगी का निखार बताएगा।