बचपन - 27 / हरबिन्दर सिंह गिल
इससे पहले कि बचपन भी
कम्प्यूटर युग में कहीं
मशीन बनकर न रह जाए
बचपन की भावनाओं को
उसके मूल्यों को
कम्प्यूटर में फीड कर
आज के बचपन के व्यक्तित्व का
प्रारूप तैयार कर लें।
बचपन के संस्कारों को
माँ-बाप की गोद में
स्कूल के प्रांगण
और मुहल्ले की गलियों में ही
पलकर बढ़ने दो।
वरना जैसे कम्प्यूटर
मानव को बहुत पीछे छोड़ गया है
अगर बचपन उसके हाथ चला गया
तो मानवता बहुत पिछड़ कर रह जाएगी।
इसका अर्थ यह नहीं
बच्चे कम्प्यूटर पढ़ना छोड़ दे
परन्तु डर सिर्फ इतना है
बच्चे कहीं
अपने बचपन का मूल्य
माँ-बाप, समाज और शिक्षकों
की कुरबानियों का हिसाब-किताब
न शुरू कर दे, करना
और बड़े होकर कहे
सिर्फ यही सब कुछ किया था।
यह मैं नहीं बोल रहा,
कम्प्यूटर का डाटा बोल रहा है।
एक बार भगवान झूठ बोल सकता है
मगर कम्प्यूटर नहीं।
इसलिये अच्छा यही है
कम्प्यूटर विज्ञान के लिए छोड़ दो
न कि साहित्य की गहराई भी
यह कम्प्यूटर समझाने लगे।