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बचपन - 31 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
बचपन एक अनमोल विरासत है
हर समाज की, हर धर्म की
हर जाति की, हर देश की
और विश्व मंच इसके सशक्त अभाव में
डोलता प्रतीत हो रहा है।
इसी सशक्त बचपन के अभाव में ही
हमें समाज, धर्म, जाति और देश
सभी बंटा-बंटा नजर आ रहा है।
जरूरत है बचपन को
अपनी दूरदर्शिता से
नक्शे में खिंची रेखाओं से
परे सोचने की।
और विचार करे
इन रेखाओं ने
क्योंकर जकड़ रहा है
सदियों से
मेरी माँ मानवता को।
और निश्चय करें में बड़ा होकर
मानव की बनी जंजीरों को काट फेकूंगा
ताकि मुझे अपनी माँ मानवता का
साफ-साफ चेहरा दिखाई दे सके।