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बचपन / शरद चन्द्र गौड़
Kavita Kosh से
लड़ते-झगड़ते
और शिकायत करते
ये छोटे-छोटे बच्चे
फिर मिल जाते
क्षण भर में
खेलते-कूदत
किलकारियाँ भरते
ये छोटे-छोटे बच्चे
इनको खेलता देख
जी उठता हूँ मैं
इनको झगड़ता देख
बचपन की यादों में
खो जाता हूँ मैं
इनकी निश्छल हँसी
कराती है मुझे
मंदिर का-सा अहसास
काश समय का चक्र
उलटा घूम जाता
और मुझे
अपना बचपन पुनः मिल पाता