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बचपन / श्रीप्रसाद

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बचपन तो बचपन होता है
चढ़ो पेड़ पर जल्दी
नन्ही नीना हँसे जा रही
लगी हाथ में हल्दी

छुकछुक छुकछुक रेल चल रही
देती जरा दिखाई
इसकी ही आवाज रात में
पड़ती रोज सुनाई

बचपन में देखा करता था
इसी रेल को जाते
कोयल के मीठे स्वर-सी
मीठी सीटी में गाते

बचपन में तैरा करता था
नदी पास में ही थी
कैसे आई नदी? कथा
नानी ने एक कही थी

बचपन में खेतों पर जाता
ऊधम भी करता था
बाबा अच्छे थे, लेकिन
ताऊ से मैं डरता था

मित्र कई थे, साथ उन्हीं के
मैं पढ़ने जाता था
साथ खेलता था, वापस फिर
साथ-साथ आता था

बचपन में पेड़ों के ऊपर
डाला करता झूला
पंख बीन लाता मोरों के
मुझे नहीं है भूला

बचपन की यादें आती हैं
कक्षा की, पढ़ने की
किसी बात पर कभी-कभी
मित्रों से ही लड़ने की

नदी बह गई, चला गया वह
बचपन प्यारा-प्यारा
पर यादें बनकर बैठा है
मन में बचपन सारा।