भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचाबऽ दोहे / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गंगा सुखलऽ जाय छै खोजऽ जरा उपाय,
पीयै के पानी घटल, मानुष कहां नहाय।1।

मुर्दा में हड़कम्प छै, कौनें कहॉ जराय,
गंगा के पानी बिना, मोक्ष कहॉ में पाय।2।

मछरी बालू मेॅ फसलऽ, मधुआ खड़ा निहार,
नाव-जाल चुकड़ी धरल, कैसें मछरी मार।3।

खेती तेॅ चोपठ होलै, डकरै गाय बथान,
पोथी पंडित के कहॉ, कहॉ शंख के शान।4।

बादल वर्षा मौन छै, बिजली चमकल जाय,
धान-धुरा बेहाल छै, सैनिक केना खाय।5।

बिजली के पंखा चलै, हवा जाय बौराय,
बोतल मं पानी पीयै, गुल्फी ठंडा खाय।6।

सिकरेट, खैनी, पुडिया, लागै छै बेजोर,
पेट मं एगो ओन नै, लेकिन रंगलो ठोर।7।

गर्मी में नर्मी कहॉ, हवा चलै मटियाय
गाछऽ के पत्ता गरम, गिरी-पड़ी कुमलाय।8।

मंदिर में घंटी बजै, मसजिद गल्ला फाड़,
मंदिर-मसजिद नाम पर, पैसा तल्लीझाड़।9।

परकिरती गुम्मा बनी, देखै छै सब हाल,
गाछ विरीछ बचाय ले, नै ते बनतै काल।10।