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बचाव की कला / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
भेड़िया गुर्राता है
आदमी की शक्ल में
और तुम
मेमने की तरह मिमियाते हो ;
तुम्हारा यही भय
तुम्हें भेड़िये का भोजन बनाता है
अगर तुम
भोजन बनना नहीं चाहते
तो तुम्हें
गुर्राने की कला सीखनी होगी,
गुर्राने की ही नहीं
झपटने की भी।