भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचा कर रख लूँ / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचा कर रख लूँ थोड़ा सा झूठ
जैसे रखा था युधिष्ठिर ने युद्ध भूमि के लिये
बचा कर रख लूँ थोड़ा सा सच
जैसे रखा था हरिश्चंद्र ने श्मशान भूमि के लिये।

बचा कर रख लूँ इज़्ज़त, थोड़ा मान
बचा कर रख लूँ स्वाभिमान।

बचा कर रख लूँ थोड़ी जुम्बिश
बचा कर रख लूँ थोड़ा प्यार।

कुछ आग बचा कर रख लूँ
रख लूँ कुछ गर्मी, कुछ जोश
अँत समय के लिये कुछ होश।