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बचा रहता है वही / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल

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या तो बन जाओ धूल
उड़ जाओ हवा संग
या तो बन जाओ कण
बहो पानी संग
दे दो अपने अंग
बनाने को नींव,
चढ़ाने को कँगूरे
वर्ना तुम्हारे नीचे लगायेंगे बारूद
दानवों-सी बर्बर मशीनें चलायेंगी पंजे
झिंझोड़ देंगी तुम्हारा वजूद
करने को चूरा-चूरा
कोई भी अपनी मर्जी से
नहीं छोड़ता अपनी जमीं
जहाँ कहीं रख देता है पैर
जहाँ कहीं रख देता है रूमाल
हक जताने लगता है
दूसरों को मक्खियों-सा उड़ाने लगता है
कुत्ते-सा दुर-दुर करके भगाने लगता है
पहाड़ हो,
वृक्ष हो,
मनुष्य हो,
बस दरियादिल को पनाह देता है
बचा रहता है वही
जो भीड़ भरी बस में भी
दूसरों को चढ़ाता है
बचा रहता है वही
जो खुद भूखा रहकर
दूसरों को खिलाता है
वर्ना पहाड़ भी उजाड़ा जायेगा
वर्ना वृक्ष भी उखाड़ा जायेगा
वर्ना मनुष्य भी पछाड़ा जायेगा।