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बचा लेता है / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कागज
वज़नदार होता है
जब नोट बन जाता है
रौंद डालता है
सारे आदर्श, मानवीयता, रिश्ते
निगल लेता है जीवन मूल्य
झोपड़ी से लेकर महलों तक
राज करता है वज़नदार कागज़
लेकिन उससे भी ज़्यादा
वज़नदार हो जाता है
जब समा जाता है किताबों में
बचा लेता है
आदर्श, मानवीयता, रिश्ते
जीवन मूल्यों को
सदा के लिए अमर
हो जाता है
कागज़
किताब का पन्ना बन