बचा हुआ समय / शचीन्द्र आर्य
उनके लिए सवाल यह नहीं था,
घोंघा जिस गति से चलता है, उस गति से हमारी पृथ्वी
अपने अक्ष पर कितने समय में एक चक्कर पूरा कर पाती?
वह सोचते होंगे,
पृथ्वी अगर दुगनी गति से घूमती,
तब बरसात का मौसम जल्दी आता। बाँधों में पानी भरा रहता।
गर्मी कम पड़ती। कम गर्मी पड़ने पर उन्हें पहाड़ों पर जाना नहीं पड़ता।
वह नहीं सोचते होंगे,
तब क्या होता खेतों में खड़ी गेंहू की फ़सल का?
उस बूढ़े घड़ीसाज की ठीक की हुई घड़ियों का?
तब क्या बागों में दसेहरी की बौर आम बन पाती?
क्या साल में दो बार धान आने से सबकी भूख मिट जाती?
महिलाओं को गर्भ में कितने दिन रखना होता, अपने अजन्मे बच्चों को?
इन सवालों के बीच खटके से उसके दिमाग़ में
एक सवाल उगता,
ऐसा चाहने वाले, क्या करते इस बचे हुए समय का?