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बची थीं इसीलिए / अनुराधा सिंह
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					वे बनी ही थीं
बच निकलने के लिए
गर्भपात के श्रापों से सिक्त 
गोलियों 
हवाओं 
मुनादियों और फरमानों से इसीलिए बच रहीं   
ताकि सरे राह निकाल सकें  
अपनी छाती और पुश्त में बिंधे तीर 
तुम्हारी दृष्टि के कलुष को अपने दुपट्टे से ढांक सकें
बचे खुचे माँड़ और दूध की धोअन से 
इसीलिए बनी थीं  
कि सूँघें बस ज़रा सी हवा 
और चल सकें इस थोड़ी सी बच रही पृथ्वी पर 
बचते बचाते 
इस नृशंस समय में भी 
बचाये रहीं कोख़हाथ और छाती
क्योंकि रोपनी थी उन्हें 
रोज़ एक रोटी 
उगाना था रोज़ एक मनुष्य
जोतनी थी असभ्यता की पराकाष्ठा तक लहलहाती
सभ्यता की फसल
यूँ तय था उनका बचे रहना सबसे अंत तक।
	
	