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बच्चा और टिड्डा / शरद बिलौरे
Kavita Kosh से
बच्चे
टिड्डा पकड़ते हैं दबे पाँव
दौड़ते, थकते, हाँफते
टिड्डे की पूँछ में धागा बांध उड़ाते हैं।
बच्चे
आसमान में उड़ जाते हैं
थके-थके से सारी रात
सोते रहते हैं
माँ की चिन्ताओं
और बाप के गुस्से से बेख़बर।
उड़ते-उड़ते टिड्डा
परियों के देश में पहुँचता है।
परियाँ बच्चों का पता पूछती हैं
रात भर टिड्डा और परियाँ
बच्चों को ढूँढ़ते हैं।
माँ-बाप के डर से
नींद में भी ठिठक जाते हैं।
सुबह टिड्डा
बच्चों को इशारे करता है
उन्हें दौड़ना और
दबे पाँव आक्रमण करना सिखाता है।
रात टिड्डा
बच्चों को मीठी नींद सुलाने के लिए
आसमान से परियों को लाता है
टिड्डा पकड़ने के आरोप में बच्चे
पिता के हाथों रोज़ पिटते हैं।
खिड़की पर बैठा टिड्डा
देखता रहता है
दबे पाँव।