भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बच्चा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चा जौं मुस्कावै छै
सबके मन केॅ भावै छै
बच्चा सबके आपनोॅ मानै
अच्छा खराब वें की पहचानै

पूतनौ के भी माईये जाने
भगवान झूकै जौं वे हठ ठाने
हाँसै आरो हँसावे बच्चा
सबके मन के भावे बच्चा।

बाल कृष्ण रो ऊ किलकारी
कोनोॅ सुख पर छै ऊ भारी
बूलै-कूदै अंगना दुआरी
मैय्योॅ के पल-पल सुखकारी

सभ्भे लेली पियारोॅ बच्चा
गोरोॅ हुअेॅ कि कारोॅ बच्चा
मन रोॅ सच्चा होय छै बच्चा
सहज-सरल मन मोहै बच्चा

तुतरावै, बलखाबै, हरसाबै बच्चा
केकरा नै लगतै अच्छा बच्चा
फागुन रो फगुनाहट बच्चा
माय गोदी रो लोरी बच्चा