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बच्चे और होम वर्क-2 / महेश चंद्र पुनेठा
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ऐसा नहीं कि बच्चे होते हों कामचोर
या उन्हें न लगता हो काम करना अच्छा
सबसे अधिक क्रियाशील होते हैं बच्चे
पर कुछ काम जैसा काम हो ना
जिसमें कुछ जोड़ने को हो कुछ तोड़ने को
कुछ नया करने को हो
वही अभ्यास कार्य नहीं
जिसे कर चुके हों वे बार-बार स्कूल में
वही रटना ही रटना
ऊब चुके हैं वे जिससे
कुछ ऐसा काम
जिसमें कुछ मस्ती हो कुछ चुनौती हो
कुछ ढूँढ़ना हो, कुछ बूझना हो
कुछ जाना, कुछ अनजाना हो
कुछ अंकों का, कुछ शब्दों का खेल हो
कुछ रंगों का, कुछ रेखाओं का मेल हो
जिसमें कुछ रचना हो
कुछ कल्पना हो
कुछ अपना हो, कुछ सपना हो
सबसे बढ़कर
बचपन सा चुलबलापन हो ।