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बच्चे का दुःख कात्यायनी
Kavita Kosh से
उसके लिए यह खेल नहीं था।
जैसा कि लोग समझते रहे।
उसे फुसलाते रहे।
खिलौनों से बहलाते रहे।
सहनशील,
भुलक्कड़,
विनम्र
अच्छा नागरिक बनाते रहे।
रचनाकाल : मई, 2001