एक बूढ़ा विस्थापित
जिसका नाम कम्मा था
मृत्यु - शैय्या पर
अचेतावस्था में
ज़िद करता
बच्चे सी —
कहता —
"मिगी छम्बे लै चलो घर आपने ...
पाड़ा अले खुए दा पानी लै अवो
मैं उए पीना जे ...बस उए !" *
उसके प्राण रहते
घरवाले उससे
झूठ बोलते रहे
नलके के पानी को
उत्तर वाले कुएँ का बतला
पानी पिलाते रहे
उसे पतियाते रहे
अब वो नहीं रहा
उसकी ज़िद कहीं और ...
एक अनपढ़ याददाश्त
बताती है
कैसे सन बहत्तर में
एक बालकटी औरत के
फ़ैसले से
इक्यावन गाँव के कुएँ
जो रहट से
मेहनत से बंधे थे
उस पड़ोसी के लिए छोड़ दिए गए
जिसे धरती सींचने की तमीज़ नहीं
कुएँ
मौन थे
गहरे थे
उलीचे जाने सम्भव नहीं थे
मिल मिलाकर
ऊपर खड़े होकर
बन्द कर दिए गए
नीचे पानी अब भी है ...
एक अन्य विस्थापित
जो अपनी मिट्टी से बहुत प्यार करता था
तिरंगा
सीने से लगाए रखता था
माँ - भूमि को छोड़ते हुए उसने
अपनी मिट्टी को काँगड़ी में भर लिया था
अन्त तक उसने दर्पण नहीं देखा
वह डल में अपनी छवि निहारना चाहता था
इस आस को दबाए
वह एक दिन कच्ची दीवार के नीचे दब गया
उसकी लाई मिट्टी को
एक चालाक मसीहा ने
राजपथ पर रख
उसमे मनीप्लाण्ट की बेलें लगाई
जो फलते फूलते
यू०एन०ओ० तक फैल गई हैं
वह चालाक आदमी
भावना से सराबोर
कैमरे के सामने
कैमरे की याददाश्त से
कला केन्द्रों
साहित्यिक कार्यक्रमों
राजनीतिक सभाओं में
ख़ूब बोलता और बताता है
कि कैसे एकाएक सन १९८९ में
स्वर्ग के झरने
मरने के लिए
बिच्छू सांप और लू से भरी
धरती पर मोड़ दिए गए ...
यह अलग बात है
पुराणकथाएँ सत्य हो रही हैं
स्वर्ग चतुर्दिक
झण्डे गाड़ रहा है
धरती हार रही है
झरने ऊँचे थे
शोर करते थे
हाथ हिला - हिलाकर
उनके फ़ोटो लिए गए
सत्ता के गलियारों में
प्रदर्शित किए गए
[जो साफ़ नहीं हैं ]
पर आज ग़ौरतलब है
फ़ोटो - लैब में बैठ
कुछ बच्चे फ़ोटो साफ़ कर रहे हैं
कुएँ खोद रहे हैं
यक़ीनन नीचे पानी अब भी है
कड़े हो रहे हैं तनकर खड़े हो रहे हैं
सावधान !
बच्चे बड़े हो रहे हैं ।
००
शब्दार्थ
—
- मुझे अपने घर छम्ब में ले चलो, मुझे वहाँ के उत्तर वाले कुँए का पानी ही पीना है, सिर्फ वही पानी।