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बच्चे / रामदरश मिश्र

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बच्चे तरह तरह के खेल खेलते रहते हैं-
मेरे घर के सामने वाली सड़क पर
मैं कभी-कभी दरवाजे़ पर खड़ा होकर इन्हें देखता रहता हूँ
आज भी खड़ा था
नव-दस साल की एक सुंदर सी बच्ची ने मुझे देखा
वह हँसती खिलखिलाती मेरे पास आई
और ‘प्रणाम दादा जी’ कह कर मुझसे लिपट गई
मैंने उस पर आशीष बरसाया
वह एक शिक्षक की बेटी थी
वैसी ही एक दूसरी लड़की मुझे देख रही थी
और थोड़ा पास आकर हँसती हुई बोली-‘नमस्ते दादा जी’
उस पर भी मैंने आशीष ढरकाया
वह एक सरकारी अधिकारी की बेटी थी
चार पाँच साल का एक लड़का
सड़क पर अंधाधुंध सायकिल चला रहा था
बार-बार मेरे दरवाजे के आगे की ऊँची भूमि पर
सायकिल चढ़ा उतार रहा था
मैंने उसे समझाया-”बेटे यह क्या करते हो, गिर जाओगे“
वह गुस्से में बोला-”डाँट क्यों रहे हो?“
मैं मुस्करा उठा
वह एक नव धनाढ्य व्यापारी का बेटा था
वह प्रायः मेरा कालबेल बजाकर भाग जाता था।
-10.4.2015