भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चों का एल्बम / एस. मनोज
Kavita Kosh से
बच्चे देखते हैं अपने
माता-पिता
दादा-दादी
अड़ोस पड़ोस के बड़े बुजुर्ग
की आंखों की पुतलियों को
जिसमें छिपी होती है
बड़ी सी गैलरी
गैलरी में होते हैं
कई फोटोज और वीडियोज
बच्चे जब भी कभी
एक गंभीर दर्शक बन
बैठते हैं उन पुतलियों के सामने
चलने लगते हैं
उन फोटोज और वीडियोज
के कोलाज
बच्चे उस गैलरी से
चुन चुन कर रखते हैं
कुछ फोटोज और वीडियोज
फिर उन्हें एडिट कर बनाते हैं
अपने लिए नया एल्बम
बच्चे अपने लिए
खोजते हैं उस गैलरी में
सद्भाव और सह अस्तित्व के चित्र
जिजीविषा के संघर्ष
सफलता की चोटियां
नव निर्माण के संकल्प
फिर गढ़ते हैं अपना जीवन
बच्चे हमारे ही प्रतिरूप होते हैं
वे बाजार से खरीद कर
नहीं लाते प्रेम या घृणा।